स्वामी विवेवाकानंद ने धर्म संसद में कहा क्या था, जिसके बाद दुनिया उनकी मुरीद बन गई



जब भी विवेकानंद की बात होती है, तब बातों की कड़ी शिकागो तक ज़रूर पहुंचती है. साल 1893 में 15 सितंबर को अमेरिका के शिकागो में आयोजित धर्म संसद में जो बातें स्वामी विवेाकनंद ने कहीं, वो आज भी मिसाल हैं.


इस भाषण ने भारत के प्रति दुनिया का नज़रिया बदल दिया. स्वामी विवाकानंद ने उस मंच से हिन्दू धर्म की व्याख्या की थी और दुनिया को हिन्दुत्व का पाठ पढ़ाया था.


उनके भाषण की वो पांच मुख्य बातें, जो आज के समय में ज़्यादा प्रासंगिक हो जाती हैं



  • मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे राष्ट्र से हूं, जिसने इस धरती के सभी राष्ट्रों के सताए लोगों को शरण दी है.


  • सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशज हठधमिर्ता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं. इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है. कितनी बार ये धरती खून से लाल हुई. कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ और न जाने कितने देश नष्ट हुए. अगर ये भयानक राक्षस नहीं होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है.


  • सभी धर्म के लोग अपने धर्म के कुएं में जीते हैं और उन्हें लगता है कि इनका कुआं ही सबसे बड़ा है.


  • उन्होंने गीता का एक श्लोक भी सुनाया, जिसका अर्थ है, जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनते हैं, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु सभी भगवान तक ही जाते हैं.


  • मुझे भरोसा है कि इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, (चाहे वे तलवार से हों या कलम से) सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा..

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